चुनाव आयोग( ECI) : इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध, जानें चुनाव नियमों में क्यों किया गया बदलाव
चुनाव आयोग...बदलाव पर कांग्रेस का सवाल: चुनाव नियम में केंद्र सरकार ने किया बदलाव, अब कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उठाए सवाल ..
नई दिल्ली:चुनाव आयोग (ईसी) की सिफारिश के आधार पर, केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया है, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले ‘कागजातों’ या दस्तावेजों को प्रतिबंधित किया जा सके। नियम 93 के अनुसार, चुनाव से संबंधित सभी ‘कागजात’ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे। इस संशोधन में ‘कागजातों’ के बाद ‘इन नियमों में निर्दिष्ट अनुसार’ जोड़ा गया है।केंद्र सरकार ने शुक्रवार 21 दिसंबर को चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया है। इस नए संशोधन तहत चुनाव से जुड़े सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के हिस्सा नहीं रहेंगे। यानी कुछ इलेक्ट्रॉनिक चुनाव दस्तावेजों तक जनता की पहुंच को सीमित करता है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।
केंद्र सरकार ने सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव नियम में बदलाव किया है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।
संशोधन के पीछे था एक अदालती मामला
कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अलग-अलग बताया कि संशोधन के पीछे एक अदालती मामला ‘ट्रिगर’ था। जबकि नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंटों की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का उल्लेख चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान उम्मीदवारों के सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज इसके दायरे में नहीं आते हैं।
नियमों का हवाला देकर मांगे गए हैं इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’
चुनाव आयोग के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब नियमों का हवाला देते हुए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं। संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि नियमों में उल्लिखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध हों और कोई अन्य दस्तावेज जिसका नियमों में कोई संदर्भ नहीं है, उसे सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं है।’ चुनाव आयोग के पदाधिकारियों ने कहा कि मतदान केंद्रों के अंदर से सीसीटीवी कैमरे की फुटेज का दुरुपयोग मतदाता गोपनीयता से समझौता कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि फुटेज का इस्तेमाल एआई का उपयोग करके फर्जी कहानी बनाने के लिए किया जा सकता है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने दिया था निर्देश
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां अधिवक्ता महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। उन्होंने चुनाव संचालन से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और फॉर्म 17-सी भाग I और II की प्रतियां मांगने के लिए याचिका दायर की थी।
चुनाव आयोग पारदर्शिता से क्यों डरता है- कांग्रेस
वहीं इस मामले में कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा और पूछा कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से क्यों डरता है। जयराम रमेश ने कहा- पार्टी संशोधन को कानूनी रूप से चुनौती देगी। सोशल मीडिया एक्स पर रमेश ने कहा, ‘अगर हाल के दिनों में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की तरफ से प्रबंधित चुनावी प्रक्रिया की तेजी से खत्म होती अखंडता के बारे में हमारे दावों की कभी पुष्टि हुई है, तो वह यही है।’
केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार को चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन किया। जिसके बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे को आड़े हाथों लिया। कांग्रेस का सवाल है कि चुनाव आयोग के पारदर्शिता और कानून को जल्दबाजी में संशोधित करने को लेकर सवाल खड़े कर रही है। यह भी पढ़े -‘राहुल गांधी पर झूठे आरोप लगाकर लोगों को गुमराह कर रहे’, बीजेपी पर बरसे भूपेश बघेल बता दें कि, चुनाव संचालन नियम, 1961 के पहले नियम 93 (2) (ए) में कहा गया था कि “चुनाव से संबंधित अन्य सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे।” ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से किए गए नए बदलाव के तहत अब केवल 1961 के चुनाव नियमों के कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए मौजूद रहेंगे। यानी चुनाव से जुड़े सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के हिस्सा नहीं रहेंगे। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचित इस बदलाव के तहत अब जनता सभी चुनाव-संबंधित कागजात का निरीक्षण नहीं कर सकेगी। इसके अलावा अब केवल चुनाव नियमों के संचालन से जुड़े कागजात की पहुंच जनता तक होगी।
इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सवाल करते हुए एक पोस्ट में लिखा, “हाल के दिनों में भारत के चुनाव आयोग की ओर से मैनेज किए जाने वाले चुनावी प्रक्रिया में तेजी से कम होती सत्यनिष्ठा से संबंधित हमारे दावों का जो सबसे स्पष्ट प्रमाण सामने आया है, वह यही है। पारदर्शिता और खुलापन भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों को उजागर करने और उन्हें खत्म करने में सबसे अधिक मददगार होते हैं और जानकारी इस प्रक्रिया में विश्वास बहाल करती है।” कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा, “पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग को सभी जानकारी साझा करने का निर्देश दिया। ऐसा जनता के साथ करना कानूनी रूप से आवश्यक भी है। लेकिन चुनाव आयोग फैसले का अनुपालन करने के बजाय, जो साझा किया जा सकता है उसकी लिस्ट को कम करने के लिए कानून में संशोधन करने में जल्दबाजी करता है। चुनाव आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है? आयोग के इस कदम को जल्द ही कानूनी चुनौती दी जाएगी।”
नियम का संशोधित संस्करण कहता है चुनाव से संबंधित इन नियमों में निर्दिष्ट अन्य सभी कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे। कानून मंत्रालय और चुनाव अधिकारियों ने कहा कि एक अदालती मामले ने सरकार को नियमों में संशोधन करने के लिए प्रेरित किया। ऐसे मामले सामने आए हैं जहां नियमों का हवाला देकर ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं। चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि केवल नियमों में उल्लिखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध हैं, और कोई भी अन्य दस्तावेज जिसमें नियमों का कोई संदर्भ नहीं है, उसे सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं है।
चुनाव संचालन नियमों में उल्लिखित नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंटों की नियुक्तियां, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेज़ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे। हालाँकि, इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ इसके दायरे से बाहर होंगे। चुनाव अधिकारियों ने आशंका व्यक्त की कि मतदान केंद्र के अंदर सीसीटीवी कैमरों की अनुमति देने से इसका दुरुपयोग हो सकता है और मतदाता गोपनीयता से समझौता हो सकता है। ऐसी सभी सामग्री फुटेज सहित उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध है।