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द‍िल्‍ली सरकार ने CCTV से सीएजी तक शुरू कराई जांच, घेरे में AAP के कई नेता

दिल्ली में बीजेपी सरकार ने अरविंद केजरीवाल के फैसलों की समीक्षा शुरू की. सीसीटीवी कैमरे लगाने में घपले की जांच के आदेश दिए. शराब नीति से जुड़ी सीएजी रिपोर्ट पीएसी को भेजी गई.

नई दिल्ली:-द‍िल्‍ली में सरकार बनाते ही बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल सरकार के फैसलों की समीक्षा शुरू कर दी. उन फैसलों की भी जांच करने को आदेश द‍िए जा रहे हैं, जिसे केजरीवाल मास्‍टर स्‍ट्रोक बताया करते थे. जिसके नाम पर देशभर में वोट मांगा करते थे. इन्‍हीं में से एक पूरी द‍िल्‍ली में सीसीटीवी कैमरे लगाने का था. रेखा गुप्‍ता सरकार के मंत्री प्रवेश वर्मा ने कार्यभार संभालते ही सबसे पहले इनकी जांच के आदेश द‍िए हैं. उन्‍होंने कहा क‍ि सीसीटीवी लगाने में बड़ा घपला सामने आ रहा है. इसल‍िए जांच जरूरी है. इसी बीच द‍िल्‍ली शराब घोटाले से जुड़ी सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी यानी पब्‍ल‍िक अकाउंट्स कमेटी में भेज दी गई है.

द‍िल्‍ली सरकार के PWD मंत्री प्रवेश वर्मा ने इस बात के जांच के आदेश द‍िए हैं क‍ि बीजेपी क्षेत्रों में CCTV कैमरे क्यों नहीं लगाए गए? प्रवेश वर्मा ने विधानसभा में ऐलान किया कि पिछली आम आदमी पार्टी सरकार के दौरान बीजेपी विधायकों के क्षेत्रों में CCTV कैमरे न लगाए जाने की जांच होगी. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में अब प्राथमिकता के आधार पर कैमरे लगाए जाएंगे. कई विधायकों ने कहा था क‍ि उनके इलाके में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.

बीजेपी विधायकों से भेदभाव
दिल्ली सरकार के मंत्री डॉक्टर पंकज कुमार ने कहा, आम आदमी पार्टी ने हमारे विधायकों के साथ भेदभाव किया. आठ विधायकों के इलाकों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे सिर्फ eyewash किया गया है. यही आरोप बीजेपी विधायक ओपी शर्मा ने लगाए. हालांकि, आम आदमी पार्टी के व‍िधायक जरनैल सिंह ने इन आरोपों को खार‍िज कर द‍िया. उन्‍होंने कहा, बिल्कुल जितनी जांच करनी है ,करें. अरविंद केजरीवाल ने गली-गली में कैमरे लगवाकर सबसे ज्यादा सीसीटीवी वाला शहर बनाया.

सीएजी रिपोर्ट को पीएसी में भेजा
इस बीच रेखा गुप्‍ता सरकार ने द‍िल्‍ली शराब नीत‍ि से जुड़ी सीएजी रिपोर्ट को पीएसी में भेज द‍िया है. विधानसभा स्‍पीकर ने कहा, सीएजी की ऑड‍िट रिपोर्ट से साफ है क‍ि शराब नीत‍ि को लागू करने में कई गंभीर अन‍ियमितताएं बरती गई हैं. सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया गया, ताक‍ि न‍िजी कंपन‍ियों को फायदा पहुंचाया जा सके. लाइसेंस देने में अनियमितता नजर आई है. शराब की कीमतें तय करने में पारदर्शिता की कमी दिखी. सीएजी की रिपोर्ट कहती है क‍ि नई नीति से 2002 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हुआ है. चर्चा के दौरान विधायकों ने इस पर गंभीर चिंता जताई. इसल‍िए दिल्ली विधान सभा की पब्‍ल‍िक अकाउंट कमेटी से इसकी जांच कराई जाएगी. यह समित‍ि तीन महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी. उसके बाद इससे जुड़े लोगों के ख‍िलाफ कार्रवाई की जाएगी.

अब आगे होगा क्‍या?

एक महीने में एक्शन टेकन रिपोर्ट सबमिट होगी.
1 मार्च को पब्‍ल‍िक अकाउंट्स कमेटी पर बात होगी.
3 मार्च तक पीएसी का गठन कर ल‍िया जाएगा.
जिसके बाद पीएसी अपनी रिपोर्ट तीन महीने में पेश करेगी.
एक पीएसी में नौ से 10 मेंबर होते हैं जिसमें विपक्ष के नेता भी शामिल होते हैं.
1 अप्रैल से पीएसी से जुड़े लोग इसकी जांच शुरू कर देंगे.

दिल्ली में भाजपा सरकार का गठन होते ही लंबे समय से पेंडिंग पड़ी CAG की 14 रिपोर्ट्स एक-एक कर सामने आने लगी हैं। सबसे पहले शराब नीति घोटाला मामले की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई। इसके बाद एक-एक कर सभी सीएजी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाएंगी और उन पर चर्चा की जाएगी। वहीं अब स्वास्थ्य विभाग को लेकर भी सीएजी रिपोर्ट का खुलासा हो गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, CAG की रिपोर्ट से पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन की खामियों का भी खुलासा हुआ है।

सरकारी अस्पतालों का खस्ताहाल

बता दें कि स्वास्थ्य विभाग की सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का खस्ता हाल और लचर प्रबंधन का भी खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट ने कथित दिल्ली के वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के दावों पर भी सवाल खड़ा किया है। जानकारी के अनुसार, हर साल सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली जरूरी दवाओं की लिस्ट तैयार करना जरूरी है लेकिन पिछले 10 सालों में केवल तीन बार ही रिपोर्ट तैयार की गई।

इन रिपोर्ट्स में पाया गया कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में जरूरी दवाएं और उपकरण मुहैया कराने के लिए सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (CPA) को जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन CPA इसमें नाकाम रही। इस कारण 2016-17 से 2021-22 के बीच दिल्ली के अस्पतालों को 33 से 47 फीसदी दवाएं खुद सीधे सप्लायरों से खरीदनी पड़ीं। इतना ही नहीं रोजमर्रा की दवाइयों की पूर्ति के लिए कई अस्पतालों को लोकल केमिस्टों से दवाइयां खरीदनी पड़ीं। रैबीज और हीमोफीलिया जैसी दुर्लभ/जानलेवा बीमारियों के इंजेक्शन भी अस्पतालों में शॉर्ट पाए गए।

मोहल्ला क्लीनिकों में भी गड़बड़ियों का खुलासा

सीएजी रिपोर्ट में मोहल्ला क्लीनिकों को लेकर भी खुलासा हुआ है। मोहल्ला क्लीनिक में कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं। साल 2016 से 2023 के बीच मोहल्ला क्लीनिक को बनाने के लिए 35.16 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए रखे गए थे लेकिन इनमें से केवल 28 फीसदी रकम ही मोहल्ला क्लीनिकों के लिए खर्च की गई, जो मात्र 9.78 करोड़ रुपए रहा। 31 मार्च 2023 तक दिल्ली में 1000 मोहल्ला क्लीनिक खोलने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन केवल 523 मोहल्ला क्लीनिक ही खुल सके। सीएजी रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली के चार जिलों में 218 में से 41 मोहल्ला क्लीनिकों में डॉक्टरों की कमी और स्टाफ के छुट्टी पर होने के कारण महीने में 15 में से 23 दिन बंद रहे। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिकों में बुनियादी सुविधाओं और उपकरणों के साथ ही दवाइयों की भी कमी पाई गई।

अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर का काम रहा सुस्त

वहीं सीएजी रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ कि अस्पतालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने का काम भी काफी सुस्त तरीके से चला। वित्त वर्ष 2016-17 के बजट के समय दी गई स्पीच में प्रस्ताव रखा गया था कि सरकारी अस्पतालों में 10 हजार बेड जोड़े जाएंगे लेकिन 2016-17 से लेकर 2020-21 तक मात्र 1357 बेड ही जोड़े गए। जून 2007 से दिसंबर 2025 के बीच स्वास्थ्य विभाग ने नए अस्पताल और डिस्पेंसरी बनाने के लिए लगभग 648 करोड़ रुपए में 15 प्लॉट लिए। हालांकि पजेशन लेने के बाद भी उन प्लॉट्स का इस्तेमाल नहीं किया जा सका।

वहीं जब अस्पतालों की ऑडिट की गई, तो पता चला कि निर्माणाधीन 8 नए अस्पतालों में से केवल 3 का ही काम पूरा हो सका है। वो भी तब जब इन अस्पतालों का निर्माण कार्य पहले से ही 6 साल देरी से चल रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि दिल्ली के इन 8 अस्पतालों को बनाने के लिए पर्याप्त फंड मौजूद था और इसके बावजूद अस्पतालों के निर्माण कार्य में देरी हुई।

सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली के अस्पतालों में पाई गईं ये खामियां

-सीएजी ऑडिट के तहत पाया गया कि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में मार्च 2022 तक 28 अस्पतालों/मेडिकल कॉलेजों में ओवरऑल स्टाफ की संख्या, तय मानकों से 21 फीसदी कम थी।
-अस्पतालों में 30 फीसदी टीचिंग स्टाफ की कमी थी और 28 फीसदी नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी थी। वहीं दिल्ली के अस्पतालों में 9 फीसदी मेडिकल ऑफिसर्स की भी कमी थी। इसके अलावा 38 फीसदी पैरामेडिकल स्टाफ, 21 फीसदी नर्स और नेशनल हेल्थ मिशन के तहत योजनाएं लागू करने वाले 36 फीसदी स्टाफ की कमी थी।
-LNJP अस्पताल के सर्जरी विभाग में बड़ी सर्जरी के लिए इंतजार करने वालों का औसत वेटिंग टाइम दो से तीन महीने पाया गया। वहीं बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग में 6 से 8 महीनों का वेटिंग टाइम रहा।
– 12 में से 6 राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सभी 7 मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर स्टाफ की कमी के कारण खाली पड़े, धूल खाते रहे।
-LNJP अस्पताल के मेडिसिन और गाइनी डिपार्टमेंट में डॉक्टर के साथ मरीज का औसत कंसल्टेशन टाइम केवल 5 मिनट पाया गया।
-लोकनायक अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के ICU वार्ड और इमरजेंसी वार्ड में उपकरणों की कमी और दवाइयों की कमी पाई गई।
LNJP के 24 घंटे आपातकालीन सेवाओं के लिए ट्रॉमा सेंटर तक में स्पेशलिस्ट डॉक्टर और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों का स्थाई इंतजाम नहीं रहा।
-रेप विक्टिम के लिए बनाए गए वन स्टॉप सेंटर में भी कोई स्थाई स्टाफ नहीं था।
-कैट्स एंबुलेंस के बेड़े में शामिल कई ऐसी एंबुलेंस पाई गईं, जो बिना जरूरी उपकरणों और साधनों के चल रही थीं।
-LNJP अस्पताल में मरीजों को रेडियोलॉजिकल डायग्नोस्टिक सेवाओं के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं अन्य बड़े अस्पतालों में स्टाफ की कमी के कारण उपकरणों का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा।
-दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों में मरीजों और स्टाफ की सुविधा के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड की गाइडलाइंस का सही से पालन नहीं किया जा रहा।
वहीं जनकपुरी और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डायटीशियन भी नहीं हैं, जिसके कारण वहां मिलने वाले खाने की क्वालिटी तक चेक नहीं की जा रही है।

सीएजी रिपोर्ट में कुछ ऐसी बातें हैं कि अगर सरकार उनके खिलाफ कार्यवाही करती है तो उन्हें लंबी अवधि के लिए जेल जाना पड़ सकता है । शराब नीति के कारण दिल्ली सरकार को 2000 करोड़ रुपये के राजस्व की हानि हुई है क्योंकि सरकार ने इस नीति में जबरदस्त तरीके से मनमानियां की हैं । शराब नीति बनाने से पहले विशेषज्ञों की सलाह ली गई लेकिन उन्हें माना नहीं गया । जिन कंपनियों की शिकायत थी और घाटे में चल रही थी, उन्हें लाइसेंस दे दिये गये । कई बड़े फैसलों पर कैबिनेट और एलजी की मंजूरी नहीं ली गई और शराब नीति के नियमों को विधानसभा में पेश नहीं किया गया । कोविड के नाम पर बिना किसी जरूरत के 144 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस माफ कर दी गई । जहां शराब की दुकानें खोलने की अनुमति नहीं थी, वहां भी दुकानें खोल दी गई ।

जिस मोहल्ला क्लीनिक की सफलता का केजरीवाल पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीट रहे थे, उसकी सच्चाई भी कैग रिपोर्ट ने देश के सामने रख दी है । रिपोर्ट कहती है कि 218 में से 41 मोहल्ला क्लिनिक स्टाफ की कमी के कारण 15 से 23 दिन तक बंद रहते थे । 2017 तक 1000 मोहल्ला क्लीनिक खोलने का दावा करने वाली सरकार ने 31 मार्च 2023 तक सिर्फ 523 मोहल्ला क्लीनिक ही खोले थे । कैग रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मोहल्ला क्लीनिकों में बुनियादी चिकित्सा उपकरणों जैसे बीपी मॉनिटरिंग,पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, थर्मामीटर, एक्सरे व्यूवर आदि की कमी पाई गई । 74 मोहल्ला क्लीनिकों में आवश्यक दवाएं भी नहीं थी । अक्टूबर, 2022 से मार्च 2023 की अवधि के दौरान मोहल्ला क्लीनिक में आने वाले 70 प्रतिशत मरीजों को देखने में एक मिनट से भी कम समय लगा । आप स्वयं विचार कीजिए कि एक डॉक्टर कैसे एक मरीज को एक मिनट से भी कम समय में देखकर दवा लिख सकता है । इसका मतलब साफ है कि मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर जनता को मूर्ख बनाया गया है । बिना थर्मामीटर के मरीज का बुखार कैसे चेक किया गया होगा । अजीब बात है कि जिन मोहल्ला क्लीनिकों में आवश्यक सुविधाएं तक नहीं थी, उनका पूरी दुनिया में प्रचार किया गया ।

केजरीवाल के मुख्यमंत्री निवास जिसे शीश महल की संज्ञा दी गई, उनको लेकर कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली लोक निर्माण विभाग ने बंगले का दायरा 1397 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 1905 वर्ग मीटर कर दिया । बंगले की निर्माण लागत अनुमान राशि से 342 प्रतिशत ज्यादा हो गई । इसका मतलब है कि केजरीवाल सरकार ने बंगले पर अनुमान से साढ़े तीन गुना ज्यादा राशि खर्च कर दी । बड़ी हैरानी की बात है कि टेंडर राशि से 290 प्रतिशत ज्यादा राशि का भुगतान कर दिया गया । मैं स्वयं सीपीडब्ल्यूडी में काम कर चुका हूं इसलिए मेरे लिए ज्यादा हैरानी की बात है कि ये कैसे हो सकता है । टेंडर राशि से 15-20 प्रतिशत ज्यादा राशि खर्च की जा सकती है लेकिन 290 प्रतिशत तो संभव ही नहीं है । इसी प्रकार अनुमानित राशि से ज्यादा से ज्यादा डेढ़ गुना खर्च होते मैंने देखा है लेकिन साढ़े तीन गुना तो संभव ही नहीं है । इसका मतलब साफ है कि इस मामले में केजरीवाल ने लोक निर्माण विभाग के अफसरों के साथ मिलकर जबरदस्त घोटाला किया है ।

VISHAL LEEL

Sr Media person & Digital creator, Editor, Anchor

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