शहीद दिवस 🇮🇳 आज ही के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी गई थी फांसी.. जानें क्या है शहीद दिवस की अहमियत
शहीद दिवस देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को आज के दिन फांसी की सजा दी गई थी। उन्होंने हंसते-हंसते इस कुर्बानी को कुबूल किया था। आज इन तीनों महापुरुषों की शहादत को शहीद दिवस के रूप में जाना जाता है।

देश की आजादी में भगत सिंह का योगदान कौन भूल सकता है। भारत में बच्चा-बच्चा भगत सिंह के बलिदान के बारे में जानता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, भारतीय युवाओं के आदर्श और साहस के प्रतीक भगत सिंह की आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को उन्हें और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी दी गई थी। यह दिन आज भी भारत में “शहीद दिवस” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस दिन तीनों महान स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दी थी।
बचपन से ही था देश से लगाव
बता दें कि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वह बचपन से ही राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित थे और उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गहरी नफरत थी। भगत सिंह का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए केवल अहिंसा का मार्ग नहीं, बल्कि क्रांतिकारी गतिविधियां भी जरूरी हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि यदि कोई देश अपनी स्वतंत्रता चाहता है, तो उसे पूरी तरह से संघर्ष करना चाहिए। भगत सिंह की सबसे चर्चित घटना 1929 में दिल्ली विधानसभा में बम फेंकने की थी, जिसका उद्देश्य केवल ध्यान आकर्षित करना था, किसी की जान लेने का नहीं।
तीन महापुरुषों को दी गई फांसी
इसके बाद वह पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए और उनके खिलाफ मुकदमा भी चला। भगत सिंह और उनके साथियों ने अदालत में अपनी बातें प्रकट करने का अवसर लिया और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ तीव्र विचार व्यक्त किए। उनकी शहादत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी ने युवाओं के दिलों में एक नई क्रांतिकारी भावना का संचार किया। उनके बलिदान ने भारतीय जनता को यह सिखाया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आत्मसमर्पण और बलिदान अनिवार्य हैं। आखिरकार तीनों महापुरुषों के बलिदान और आजादी के संघर्ष की वजह से 1947 में भारत अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ।
क्या है शहीद दिवस का महत्व
23 मार्च का दिन “शहीद दिवस” के रूप में इसलिए जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी जान की कुर्बानी दी। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए केवल संघर्ष की आवश्यकता नहीं, बल्कि साहस और बलिदान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। हर साल इस दिन शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके संघर्ष को याद किया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी शहादत से प्रेरित हो सकें।
शहीद दिवस का इतिहास (Martyrs Day 2025)
•साल 1928 में साइमन कमीशन भारत आया था लेकिन उसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था. इससे पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुआ.
•इस प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे. हालांकि, ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेम्स ए स्कॉट के आदेश पर प्रदर्शन में लाठीचार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए.
•चोट लगने के 2 हफ्ते बाद 17 नवंबर 1928 को दिल का दौरा पड़ने के कारण लाला लाजपत राय का निधन हो गया. डॉक्टरों का मानना था कि लाला लाय की मौत का कारण 30 अक्टूबर को उनकी देह पर पड़ी पुलिस की लाठियां थीं.
•उनकी मौत के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने जेम्स ए स्कॉट से बदला लेने का निर्णय किया.
•लाल लाजपत राय की मौत के एक महीने बाद 17 दिसंबर की शाम भगत सिंह और उनके साथी पुलिस ऑफिस से जेम्स स्कॉट के निकलने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन अनजाने में साथी ने सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर इशारा कर दिया.
•भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सॉन्डर्स हत्या कांड में दोषी ठहराया गया और 23 मार्च 1931 को उन्हें लाहौर जेल में फांसी दे दी गई.
“क्रांति का मतलब है समाज में बदलाव...”
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनके परिवार में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। बचपन से ही उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों को देखा और महसूस किया था। उनके मन में देश को आजाद कराने की इच्छा प्रबल होती गई। भगत सिंह ने महसूस किया कि केवल शांतिपूर्ण आंदोलनों से अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उनका मानना था कि क्रांति के बिना आजादी संभव नहीं है।
भगत सिंह के विचार केवल हिंसा तक सीमित नहीं थे। वे एक विचारक, लेखक और दार्शनिक भी थे। उन्होंने कहा था, “क्रांति का मतलब केवल खून-खराबा नहीं है। क्रांति का अर्थ है समाज में बदलाव लाना।” उनका मानना था कि आजादी केवल अंग्रेजों से मुक्ति नहीं है, बल्कि समाज में समानता, न्याय और बंधुत्व की स्थापना करना है।
भगत सिंह के प्रेरक विचार
“वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे।”
“मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी।”
“बम और पिस्तौल क्रांति नहीं करते। क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है।”
“वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे।”
“प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।”
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।”
“जिन्दा रहने की हसरत मेरी भी है, पर मैं कैद रहकर अपना जीवन नहीं बिताना चाहता।”
“आलोचना और स्वतंत्र सोच एक क्रांतिकारी के दो अनिवार्य गुण हैं।”
“राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।”
“अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए।”
23 मार्च 1931 को मां भारती के इन तीन सपूतों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ाया था। ये तीनों महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले अहिंसक आंदोलन से अलग होकर क्रांतिकारी रास्ते पर चल पड़े थे। इन तीनों ने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में समर्पित कर दिया था। उनका मकसद केवल भारतीयों को स्वतंत्रता दिलाना था और इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाए थे।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का सर्वोत्तम बलिदान दिया। भगत सिंह ने न केवल क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया, बल्कि उनके द्वारा उठाए गए कदमों ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। उनका यह विश्वास था कि केवल अहिंसा से भारत को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, बल्कि संघर्ष और क्रांति के माध्यम से ही यह संभव है। राजगुरु और सुखदेव भी भगत सिंह के साथ इस क्रांतिकारी कार्य में शामिल थे। इनका उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करना नहीं था, बल्कि भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए जागरूक करना भी था। इन तीनों ने अपने जीवन को इस उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया था।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वाले इन क्रांतिकारियों ने अपने बलिदान से यह सिद्ध कर दिया कि भारतीयों में स्वतंत्रता के लिए अपार जुनून था। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे वीरों ने केवल अपने देश को स्वतंत्रता दिलाने की दिशा में योगदान नहीं दिया, बल्कि उन्होंने पूरे राष्ट्र को एकजुट किया और अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ जन जागरण किया।